पड़ोस में ही बेगाना होगा भारत – Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar – nayaindia.com

ऑपरेशन सिंदूर के बाद से भारत और पाकिस्तान की जो तुलना शुरू हुई है वह आगे भी जारी है। कूटनीतिक संबंधों में तुलना हो रही है तो वैश्विक व्यापार के मामले में भी तुलना हो रही है। सोशल मीडिया और पारंपरिक मीडिया में भी बताया जा रहा है कि पाकिस्तान के उत्पादों पर अमेरिका में पहले 29 फीसदी टैक्स लगता था, जिसे घटा कर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 19 फीसदी कर दिया है। उसके साथ अमेरिका ने तेल उत्खनन का समझौता भी किया, जिसके तहत अमेरिकी कंपनियां पाकिस्तान में तेल खोजेंगी और तेल निकालेंगी। इसे लेकर ट्रंप ने तंज भी किया कि एक दिन हो सकता है कि पाकिस्तान भी भारत को तेल बेचे।
यह बड़ा मजाक है। अब पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर तीन महीने में दूसरी बार अमेरिका के दौरे पर जा रहे हैं। वे जून में पांच दिन के लिए अमेरिका गए थे, जहां राष्ट्रपति ट्रंप ने उनके लिए व्हाइट हाउस में लंच का आयोजन किया। अगले हफ्ते वे फिर अमेरिका जा रहे हैं। एक तरफ पाकिस्तान पर अमेरिका ने टैरिफ कम कर दिया, दूसरी ओर उसे तमाम अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से कर्ज या अनुदान दिलाया और उसके सैन्य नेतृत्व का भी अमेरिका में स्वागत किया जा रहा है।
बांग्लादेश पर राष्ट्रपति ट्रंप ने 26 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया था तब भारत में इस बात पर बड़ी खुशी जताई जा रही थी। तमाम आर्थिक जानकार दावा कर रहे थे कि इससे भारत के लिए बहुत बड़ा मौका बना है। बांग्लादेश परर 26 फीसदी टैरिफ लगा दिया गया है, जबकि भारत 10 फीसदी बेसलाइन टैरिफ के साथ अमेरिका से कारोबार कर रहा है तो इसका बड़ा लाभ भारत को मिलेगा। कहा जाने लगा कि भारत अब टेक्सटाइल का पूरा बाजार कब्जा कर लेगा। बांग्लादेश के उत्पाद अमेरिका में महंगे हो जाएंगे तो भारत के उत्पादों की मांग बढ़ेगी। लेकिन दो महीने से भी कम समय में तस्वीर बदल गई।
बांग्लादेश पर तो 26 फीसदी टैरिफ लगा है लेकिन भारत पर टैरिफ बढ़ कर 50 फीसदी हो गया यानी बांग्लादेश से लगभग दोगुना। तो  अब क्या होगा? अब तो अमेरिकी बाजार में भारत के टेक्सटाइल उत्पादों के लिए जो भी जगह थी वह बांग्लादेश को जा सकती है। हालांकि बांग्लादेश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह इसका लाभ उठाए लेकिन अगर वहां राजनीतिक स्थिरता होती तो वह भारत पर लगाए गए भारी भरकम टैरिफ का लाभ उठा सकता था।
राष्ट्रपति ट्रंप ने जैसे पाकिस्तान पर लगने वाला टैरिफ 29 से घटा कर 19 फीसदी किया उसी तरह भारत के एक अन्य पड़ोसी श्रीलंका पर लगने वाला टैरिफ भी 24 फीसदी से घटा कर 20 फीसदी कर दिया। यह कमाल की बात है कि जब राष्ट्रपति ट्रंप ने पहली बार दुनिया के देशों पर जैसे को तैसा टैरिफ की घोषणा की तो श्रीलंका पर 44 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया। बाद में ट्रंप ने इसे घटा कर 30 फीसदी किया और अंत में 31 जुलाई की वार्ता के बाद अमेरिका ने श्रीलंका के निर्यात पर टैरिफ घटा कर 20 फीसदी कर दिया। हालांकि श्रीलंका से अमेरिका का निर्यात बहुत कम है। वह करीब तीन अरब डॉलर का निर्यात अमेरिका को करता है। लेकिन माना जा रहा है कि टैरिफ की दर कम होने के बाद उसका निर्यात बढ़ेगा। दिलचस्प बात यह है कि श्रीलंका भी अमेरिका को सबसे ज्यादा टेक्सटाइल और रबड़ से बने उत्पादों का निर्यात करता है। इस तरह अमेरिका के टेक्सटाइल बाजार पर बांग्लादेश, श्रीलंका और कुछ हद तक वियतनाम की भी नजर होगी।
सोचें, भारत की क्या स्थिति हो गई? भारत के अलावा किसी दूसरे पड़ोसी देश ने अमेरिका और राष्ट्रपति ट्रंप के साथ दोस्ती का डंका नहीं पीटा। लेकिन आज पाकिस्तान 19 फीसदी, श्रीलंका 20 फीसदी और बांग्लादेश 26 फीसदी टैरिफ वाला देश है और भारत 50 फीसदी टैरिफ वाला देश। यह भी कैसी विडम्बना है कि ये तीनों देश चीन के करीबी माने जाते हैं। इनके यहां चीन का बड़ा निवेश है और इन देशों को चीन ने बड़ा कर्ज भी दे रखा है। फिर भी ये देश अमेरिका के ज्यादा करीबी हो गए और इनके पड़ोस का भारत बेगाना हो गया।
मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति –
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