मैया सम्मान योजना, कल्पना सोरेन फैक्टर और जमीनी जुड़ाव… पढ़ें- हिमंता बिस्वा पर ऐसे भारी पड़े हेमंत सोरेन – Aaj Tak

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झारखंड में हेमंत सोरेन ने सत्ता में शानदार वापस की है. 81 विधानसभा सीटों वाले राज्य में INDIA ब्लॉक ने 56 सीटों पर जीत का परचम लहराया है. इसमें हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा ने (JMM) ने 34 सीटें जीती हैं. चुनाव के नतीजों के साथ ही ये साफ हो गया है कि झारखंड की जनता का विश्वास हेमंत सोरेन पर बरकरार है. हालांकि बीजेपी ने झारखंड में हेमंत सोरेन के घेरने की काफी कोशिश की. इसके लिए राज्य में आक्रामक अभियान चलाया. दरअसल, भाजपा को भरोसा था कि वह अटैकिंग कैंपेन के जरिए ‘चुनावी हवा’ अपने पक्ष में कर सकती है. 
इसके लिए असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा को कमान सौंपी गई. बीजेपी ने उन्हें चुनाव सह प्रभारी बनाया. हिमंता ने झारखंड में डेरा डाला. उन्होंने सीएम सोरेन के नेतृत्व को लगातार टारगेट किया और बांग्लादेश से घुसपैठ और सरकार के कथित भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उठाए. उनके प्रचार का मुख्य फोकस राज्य के आदिवासी समुदायों को भाजपा के पक्ष में संगठित करना और हिंदुत्व आधारित मुद्दों को प्रमुखता देना था, लेकिन हेमंत सोरेन, हिमंता बिस्वा सरमा पर पूरी तरह भारी पड़े. हिमंता के चुनावी कैंपेन भले ही सुर्खियां बटोरते रहे, लेकिन वोटर्स के मन में नहीं उतर सके औऱ जबकि एनडीए सिर्फ 24 सीटों पर ही सिमट गया. इसमें बीजेपी के खाते में 21 सीटें आई हैं. अब नजर डालते हैं उन फैक्टर्स पर जिन्होंने हेमंत सोरेन को दोबारा सत्ता तक पहुंचाया और वह हिमंता पर कैसे भारी पड़े…
हेमंत सोरेन को लेकर पैदा हुई सहानुभूति लहर 
2024 की शुरुआत में ही हेमंत सोरेन मुश्किल में फंस गए थे, जब 31 जनवरी को उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने गिरफ्तार कर लिया था. माना जाता है कि उनकी गिरफ्तारी ने आदिवासियों को एकजुट किया और ये नैरेटिव सेट हो गया कि झारखंड के सीएम के रूप में हेमंत सोरेन के शपथ लेने के बाद पहले दिन से ही भाजपा राज्य में सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रही थी. इस फैक्टर ने हेमंत सोरेन के पक्ष में काम किया और उनके लिए एक मजबूत सहानुभूति लहर पैदा हो गई. 
महिला वोटर्स बनीं गेमचेंजर
झारखंड में मैया सम्मान योजना को गेम चेंजर के तौर पर देखा जा रहा है. जिसने मौजूदा सरकार के पक्ष में हवा का रुख मोड़ दिया. इस योजना के जरिए 45 लाख महिलाओं को लाभ मिला. इस योजना के तहत पात्र लाभार्थी महिलाओं को 1000 रुपये प्रदान किए गए और झारखंड में चुनाव से पहले तीन किश्तें दी गईं. इस योजना की शुरुआत 23 सितंबर, 2023 को हुई थी. योजना के जरिए 21 से 50 साल की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है. हालांकि चुनाव से पहले हेमंत सोरेन सरकार ने इस योजना के तहत मिलने वाली राशि को 1000 से बढ़ाकर 2500 रुपए कर दिया था.
ईसाई और आदिवासियों का समर्थन
ईसाई और आदिवासियों सहित अल्पसंख्यक समुदायों ने इंडिया ब्लॉक का भारी समर्थन किया. एनडीए के धार्मिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयासों के बावजूद इन समुदायों ने विपक्षी ब्लॉक की समावेशी नीतियों पर भरोसा किया. इनके समर्थन ने इंडिया ब्लॉक और एनडीए के बीच की खाई को चौड़ा करने में निर्णायक भूमिका निभाई. 
कल्पना सोरेन फैक्टर
कल्पना सोरेन ने इस चुनाव में अहम भूमिका निभाई. वह एक स्टार प्रचारक और भीड़ खींचने वाली नेता के तौर पर उभरीं, उनकी सभी सभाओं में बड़ी संख्या में लोग धैर्यपूर्वक उनकी बातें सुनने के लिए इंतजार करते थे. लोगों से उनका जुड़ाव, मिलनसार स्वभाव, स्थानीय सादरी, बंगाली, अंग्रेजी, हिंदी और संथाली जैसी कई भाषाओं में सहज होने के साथ ही  भाषण देने की उनकी क्षमता ने मतदाताओं के बीच अपनेपन की भावना विकसित की. उन्होंने प्रचार अभियान में बहुत समय बिताया. 2019 में सफल चुनाव अभियान की जिम्मेदारी हेमंत सोरेन के कंधों पर थी. लेकिन 2024 में कल्पना सोरेन ने बड़ी जिम्मेदारी संभाली है. यह भी साफ है कि कल्पना के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर अभियान और 90 से अधिक सार्वजनिक रैलियां भी इंडिया ब्लॉक के लिए एक सार्थक परिणाम लेकर आईं.
स्थानीय मुद्दों पर फोकस से मिला फायदा
हेमंत सोरेन ने स्थानीय समस्याओं जैसे बेरोजगारी, शिक्षा, और कृषि संकट के समाधान की दिशा में कई योजनाएं लागू कीं. ‘सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना’ और महिलाओं को सब्सिडी पर राशन जैसे प्रोग्राम ने ग्रामीण और गरीब तबके का समर्थन जुटाया. इसके साथ ही बिजली बिल माफ़ी और 200 यूनिट मुफ़्त बिजली भी हेमंत सोरेन के लिए तुरुप का इक्का साबित हुई.
जमीनी जुड़ाव पड़ा बीजेपी पर भारी
हेमंत सोरेन की सुलभ और भरोसेमंद नेतृत्व शैली ने उन्हें जनता का चहेता बना दिया. ज़मीनी स्तर के आंदोलनों से जुड़े रहकर और जनता की शिकायतों के सीधे समाधान से उन्होंने लोगों के नेता के रूप में अपनी छवि को मज़बूत किया. इसके साथ ही उन्होंने भाजपा को लगातार एक “बाहरी” पार्टी के रूप में पेश किया, और खुद को राज्य की आकांक्षाओं और चिंताओं की आवाज़ के रूप में पेश किया है.
NDA के खराब प्रदर्शन की बड़ी वजह
एनडीए के निराशाजनक प्रदर्शन से उसकी कमज़ोर रणनीति भी उजागर होती है. भाजपा ने बाहरी नेताओं पर भरोसा किया और स्थानीय नेतृत्व का भरपूर उपयोग नहीं किया. हिमंता बिस्वा सरमा को चुनाव सह प्रभारी की ज़िम्मेदारी सौंपी गई, जबकि शिवराज सिंह चौहान को झारखंड का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया. स्थानीय मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया और भाजपा का अभियान घुसपैठ के एक ही मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमता रहा. भाजपा ने एसटी के लिए आरक्षित 28 में से 27 सीटें खो दी हैं. इसका मतलब है कि आदिवासियों ने भाजपा को सिरे से नकार दिया है. इससे यह भी पता चलता है कि भाजपा नेतृत्व आदिवासियों को समझाने और मनाने में विफल रहा. ‘आदिवासी अस्मिता-माटी, बेटी, रोटी’ को बचाने का उनका नारा कारगर साबित नहीं हुआ.
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