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Sahitya AajTak 2024: दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में चल रहे साहित्य आजतक 2024 के अंतिम दिन शाम गजलों से गुलजार रही. मौका था शाम-ए-गजल का. जब सुदीप बनर्जी ने अपनी आवाज से सभी को गुनगुनाने पर मजबूर कर दिया. इससे पहले और भी कई सेशन आयोजित हुए.
सुर, शब्द, साहित्य, कला और संगीत का बेजोड़ संगम साहित्य आजतक में देखने को मिला. यहां जवां शायरों की महफिल भी लगी, तो हास्य और व्यंग्य के रस से सराबोर हास्य कवि सम्मेलन का भी लोगों ने खूब लुत्फ उठाया. सिने जगत के एक से बढ़कर एक कलाकारों और गायकों के भी कई सत्र हुए. लोगों ने यहां उन्हें भी नजदीक से जाना और सुना.
कई सारे मुद्दों पर चली बात
इन सब के अलावा साहित्य, समाज और सियासत पर भी विशद चर्चाएं हुईं. इनमें बड़ी हस्तियों ने शिरकत किया और अपनी बातों को रखा. यहां साहित्य के भविष्य पर भी चर्चा हुई, तो साहित्य के रास्ते तकनीक बाधा बन रही है या फिर सीढ़ी इस बारे में भी बताया गया. कैसे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर आज साहित्य और संस्कृति को और समृद्ध किया जा सकता है और पुरानी विरासतों को संभाला जाए, इन पर भी बातें हुई.
साहित्य, गीत, संगीत और भी बहुत कुछ
कुछ लेखकों और विद्वत जनों ने वैसी अनकही कहानिया और किस्से भी सुनाए जिससे आजतक हमलोग कभी वाकिफ नहीं हुए होंगे. पिछले दो दिनों से चला आ रहा ये कारवां रविवार की शाम को शाम-ए-गजल पर आकर रुका. यहां देश के जाने-माने गजलकार सुदीप वर्मा ने गालिब से लेकर बशीर बद्र तक की गजलों को अपनी आवाज दी.
साहित्य आजतक 2024 की अंतिम शाम रही गजलों के नाम
सुदीप बनर्जी एक प्रसिद्ध भारतीय गजल गायक हैं. इलाहाबाद के एक बहुत ही प्रसिद्ध परिवार से आते हैं. सुदीप ने अपनी स्कूली शिक्षा और कॉलेज की पढ़ाई दिल्ली में की और बहुत कम उम्र में ही गजलों की ओर रुख कर लिया.
जाना-माना नाम हैं गजल गायक सुदीप
सुदीप ने विद लव तुम्हारा और चौसर नामक दो फीचर फिल्मों के लिए भी संगीत तैयार किया है. सुदीप ने अपने संगीत कार्यक्रमों के लिए भारत के विभिन्न शहरों की यात्रा की है. देश से बाहर भी उन्होंने कई कार्यक्रम किये हैं. वह भारत के एकमात्र गायक हैं जो हर साल लगातार गजल रिलीज करते हैं.
गालिब के शेर से की शाम-ए-गजल की शुरुआत
सुदीप ने शाम-ए-गजल की शुरुआत गालिब के एक शेर के साथ की. उन्होंने कहा कि आज की शाम की शुरुआत मैं गालिब से करूंगा. साथ ही उन्होंने दिल्ली के बारे में भी दो शब्द कहें- ‘अपनी पगड़ी संभालिएगा मीर. ये दिल्ली है’. इसके बाद उन्होंने ये गजल पेश किया.
वो जो हम में तुम में करार था… तुम्हें याद हो कि न याद हो..
वो तुम्हारा कहना कि जाएंगे… अगर आ सके तो फिर आएंगे…
उसे इक जमाना गुजर जाएंगे… तुम्हें याद हो कि न याद हो
पहला गजल खत्म होने के बाद उन्होंने अपने साज और साजदारों का परिचय दिया. बताया कि विनायक तबले पर हैं. शाहनवाज गिटार पर और मैं हारमोनियम पर. इसके बाद सुदीप ने दूसरा नगमा पेश किया है –
जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं….
बढ़ता ही गया गजलों का सिलसिला..
ऐसे ही गजलों का सिलसिल बढ़ता गया और सुदीप ने एक के बाद खूबसूरत गजल पेश किये. उन्होंने बशीर साहब का भी गजल गया. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वो कहते हैं दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है, जो भी गुजरा उसी ने लूट लिया. इसलिए मैं बशीर साहब की एक गजल पेश करने जा रहा हूं. इस गजल को अभी मैंने ही रिलीज किया है. इसे कंपोज भी मैंने ही किया है.
है अजीब शहर की ये जिंदगी…
न सफर रात, न कयाम है…
बशीर साहब की गजल के बाद सुदीप ने निदा फाजली साहब की गजल पेश की. उन्होंने बताया कि इस गजल में समें हिंदी और उर्दू का सुंदर मिश्रण है. ऐसी गजल मैंने कभी नहीं सुनी. पेश है-
धड़कन-धड़कन धड़क रहा है अल्लाह तेरो नाम…
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