सब ऑपरेशन सिंदूर से शुरू हुआ – Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar – nayaindia.com

वैसे तो अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अप्रैल के शुरू में ही दुनिया भर के देशों के खिलाफ जैसे को तैसा टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया था। उसके बाद 22 अप्रैल को पहलगाम कांड हुआ और फिर छह और सात मई की दरम्यानी रात को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया था, जिसका सीजफायर 10 मई की शाम को हुआ। इससे पहले तक राष्ट्रपति ट्रंप की टैरिफ की लड़ाई सामान्य रूप से दुनिया के तमाम देशों के खिलाफ थी। वे दुनिया के तमाम देशों पर उसी तरह के टैरिफ लगाना चाहते थे, जिस तरह के टैरिफ उन देशों में अमेरिकी उत्पादों पर लगता था। उनके निशाने पर एक सौ देश थे और उनकी बंदूक भारत की ओर नहीं घूमी थी। उन्होंने  अप्रैल में टैरिफ बढ़ाने की घोषणा करके उसे तीन महीने के लिए टाल भी दिया था ताकि इस बीच व्यापार संधि हो सके।
तभी सवाल है कि अप्रैल में ट्रंप की घोषणा के बाद ऐसा क्या बदला, जिससे उनकी बंदूक की नाल भारत की ओर घूम गई और वे लगातार भारत को निशाना बना कर हमला करने लगे? यह ध्यान रखने की बात है कि भारत को लेकर ट्रंप जिस तरह की बातें कर रहे हैं वह ट्रंप जैसे नेता के स्तर से भी सामान्य नहीं हैं। तभी ऐसा लग रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर और उसके सीजफायर के बाद स्थितियां बदली हैं। इसमें दो कारण समझ में आते हैं। पहला तो यह कि राष्ट्रपति ट्रंप चाहते होंगे कि उनको सीजफायर का श्रेय मिले, जो भारत नहीं दे रहा है। गौरतलब है कि ट्रंप ने ही 10 मई की शाम को सीजफायर की घोषणा की थी। उनको सोशल मीडिया पोस्ट के बाद भारत की ओर से एक 42 सेकेंड की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई, जिसमें सीजफायर की जानकारी दी गई। उसके बाद से ट्रंप 35 बार से ज्यादा कह चुके हैं कि उन्होंने दो परमाणु  शक्ति संपन्न देशों का युद्ध रूकवाया।
उनके बार बार कहने के बावजूद भारत ने उनको युद्ध रूकवाने का श्रेय नहीं दिया और उलटे इस बात का खंडन किया। संभव है कि नोबल पुरस्कार पाने के लिए बेचैन ट्रंप को लग रहा हो कि दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों का युद्ध रूकवाने का श्रेय अगर मिल जाए तो उनको नोबल मिल सकता है। वे एक इंटरव्यू में इस बात पर दुख जता चुके हैं कि उन्होंने इतना बड़ा काम किया लेकिन उनको श्रेय नहीं मिल रहा है।
भारत की मुश्किल यह है कि वह जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान के मसले पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को किसी स्थिति में स्वीकार नहीं कर सकता है। अगर किसी ने मध्यस्थता की भी है तो भारत उसका सार्वजनिक रूप से जिक्र नहीं करेगा। हो सकता है कि ट्रंप इस वजह से नाराज हुए हों। ध्यान रहे उनकी नाराजगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसद में दिए भाषण के बाद ज्यादा बढ़ी है, जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी नेता ने सीजफायर नहीं कराई है। उसके बाद ही 25 फीसदी टैरिफ और रूस के साथ कारोबार की वजह से 25 फीसदी जुर्माने का टैरिफ यानी कुल 50 फीसदी टैरिफ लगा। इसके बाद वे बहुत कुछ और होने की बात भी कर रहे हैं। उन्होंने व्यापार संधि पर भी वार्ता रोकने और पहले टैरिफ का मामला सुलझाने की बात कही है।
सीजफायर का श्रेय नहीं मिलने के अलावा ऑपरेशन सिंदूर की वजह से दूसरी चीज बदली है वह भारत के प्रति वैश्विक धारणा है। पाकिस्तान की जमीन पर आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के बाद दोनों के देशों के बीच शुरू हुए संघर्ष में भारत की सैन्य ताकत और उसके प्रति दुनिया के देशों का कूटनीतिक रवैया जाहिर हो गया है। भारत भले स्वीकार नहीं कर रहा है और पेंसिल टूटने की बात कर रहा है लेकिन कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सामरिक विशेषज्ञों ने भारत के लड़ाकू विमानों के नुकसान की बात कही है। खुद राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि भारत के पांच विमान गिरे।
भारत के सैन्य अधिकारियों ने माना है कि चीन ने पाकिस्तान के जरिए भारत के खिलाफ अपने हथियारों का परीक्षण किया। दोनों देशों के बीच सीजफायर हुआ तो वह भी बिना शर्त था, जिसकी वजह से पाकिस्तान को जीत का जश्न मनाने का मौका मिला। सोचें, भारत  कह रहा है कि पाकिस्तान ने घुटने टेके और गिड़गिड़ाया तब सीजफायर हुआ। अगर ऐसी स्थिति थी तो भारत ने पाकिस्तान के सामने शर्तें क्यों नहीं रखीं? और कुछ नहीं तो पहलगाम कांड को अंजाम देने वाले आतंकवादियों की मांग ही जा सकती थी!
यह सभी सामरिक जानकारों की राय है कि भारत को अभी हमला जारी रखना चाहिए था, जिससे पाकिस्तान की सैन्य क्षमता की पोल खुल जाती और पाकिस्तानी जनता के सामने उसका सैन्य नेतृत्व एक्सपोज हो जाता। इसका भारत को लंबे समय में लाभ मिलता। लेकिन भारत ने अचानक हमला रोक दिया, जिससे यह संदेश बना कि पाकिस्तान भी एक बड़ा मिलिट्री पावर वाला देश है। इससे पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को हीरो बनने का मौका मिला।
बाद में पता चला कि पाकिस्तान की सेना ने भारत द्वारा नष्ट किए गए तमाम आतंकवादी ठिकानों को फिर से नया बनवा दिया। ऑपरेशन सिंदूर की वजह से भारत की सैन्य ताकत पाकिस्तान की बराबरी में आ गई और उसके बाद कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत के प्रति कोई बहुत सद्भाव देखने को नहीं मिला। युद्ध में दो देशों चीन और तुर्किए ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया, जबकि भारत को जुबानी  समर्थन सिर्फ इजराइल का मिला। दुनिया भर के देशों ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की जरुरत बताई और पहलगाम कांड पर दुख जताया लेकिन किसी ने भारत की सैन्य कार्रवाई का समर्थन नहीं किया।
सो, संभव है कि भारत की सैन्य और कूटनीतिक ताकत एक्सपोज होने के बाद राष्ट्रपति ट्रंप को लगा हो कि वे भारत पर दबाव बना सकते हैं और अपने हिसाब से व्यापार संधि करा सकते हों। जो हो इसमें कोई संदेह नहीं दिख रहा है कि सब कुछ ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदला। भारत ने बिना सोचे समझे और पाकिस्तान की तैयारियों का आकलन किए बगैर सैन्य कार्रवाई शुरू की, जिसकी वजह से सैन्य कार्रवाई शुरू होने के तुरंत बाद भारत को नुकसान हो जाने की खबर आई। यह भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान ने भी माना कि भारत को नुकसान हुआ औऱ उसके बाद रणनीति पर फिर विचार करके नौ मई की रात को हमला शुरू हुआ। लेकिन भारत उस हमले को भी जारी नहीं रख सका।
बाद में जकार्ता में भारत के डिफेंस अताशे कैप्टेन शिवकुमार ने कहा कि भारत का राजनीतिक नेतृत्व सोच रहा था कि आतंकवादी ठिकानों पर हमला करेंगे तो पाकिस्तान की सेना जवाबी हमला नहीं करेगी। इस वजह से सेना को निर्देश था कि पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर हमला नहीं करना है। इस राजनीतिक फैसले की वजह से भारतीय सेना को नुकसान होने की खबर है। ट्रंप को पता चल गया है कि भारत की सैन्य क्षमता क्या है और कूटनीतिक पहुंच कहां तक है। उनको यह भी पता है कि चीन के साथ भारत एक सीमा से ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकता है क्योंकि दोनों के बीच भू राजनीतिक मसले बहुत उलझे हुए हैं और सीमा विवाद सुलझाना कठिन है। हो सकता है कि इसलिए उन्होंने अत्यधिक दबाव की कूटनीति शुरू की ताकि भारत के साथ मनमाफिक समझौता हो सके।
मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति –
Your email address will not be published. Required fields are marked *






Previous post
पड़ोस में ही बेगाना होगा भारत
Next post
इनकम टैक्स बिल दोबारा पेश होगा

source.freeslots dinogame telegram营销

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Toofani-News