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गॉड के अस्तित्व पर हुई बहस में हिस्सा लेते हुए शायर और गीतकार जावेद अख्तर ने कई झकझोर देने वाली बातें कहीं. बेहद मुखर होकर खुद को नास्तिक (atheist) कहने वाले जावेद अख्तर पिछले दिनों दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब में थे. जहां ‘Does God exist?’ (क्या गॉड का अस्तित्व है?) विषय पर एक डिबेट का आयोजन किया गया था. गॉड के वजूद का समर्थन करने के लिए उनके सामने थे कोलकाता की वाहयान फाउंडेशन के मुफ्ती शमाइल नदवी.
इस बेहद दिलचस्प और अब वायरल हो चुकी इस बहस को मॉडरेट किया Lallantop.com के संपादक सौरभ द्विवेदी ने. उल्लेखनीय ये भी है कि नदवी और उनकी फाउंडेशन ने इसी साल कोलकाता उर्दू अकादमी द्वारा जावेद अख्तर को बुलाए जाने का विरोध किया था. तब नदवी ने जावेद अख्तर को गॉड के अस्तित्व पर बहस करने का चैलेंज दिया था.
बहस में जावेद अख्तर ने ईश्वर के अस्तित्व के खिलाफ अपनी बात को भावनात्मक नहीं, बल्कि इतिहास, कॉमन सेंस, तर्क, इंसानी अनुभव और नैतिक सवालों के सहारे आगे बढ़ाया. उनकी पूरी दलील को अगर बड़े-बड़े विषयों में समझा जाए, तो उसका ढांचा कुछ इस तरह बनता है.
1. हर दौर में ईश्वर बने, और खत्म हो गए
सबसे पहले उन्होंने इतिहास का सहारा लिया. उनका कहना था कि ईश्वर का विचार कोई नया नहीं है. हजारों सालों से अलग-अलग सभ्यताओं में अलग-अलग देवता रहे हैं. ग्रीक, रोमन, मिस्री, जर्मेनिक जैसी सभ्यताएं, जिनके लोग जाहिल नहीं थे बल्कि बड़े फिलॉसफर, आर्किटेक्ट और विचारक थे, वे भी अपने-अपने देवताओं में उतना ही यकीन रखते थे जितना आज के धार्मिक लोग अपने ईश्वर में रखते हैं. लेकिन समय के साथ वे सारे देवता खत्म हो गए. इससे वह यह सवाल उठाते हैं कि आज जिन ईश्वरों को अंतिम सत्य माना जा रहा है, क्या भविष्य में उनका भी वही हाल नहीं होगा.
2. ईश्वर में इतना ही यकीन है तो बिना सवाल के फेथ क्यों मांगते हो?
इसके बाद उन्होंने धर्म की बुनियाद में मौजूद ‘फेथ’ की अवधारणा पर सवाल उठाया. उनके अनुसार हर धर्म इंसान से फेथ मांगता है, और फेथ का मतलब है बिना सबूत, बिना गवाह, बिना तर्क और बिना लॉजिक किसी बात को मान लेना. अगर किसी विश्वास के पीछे सबूत और तर्क हों, तो वह फेथ नहीं बल्कि बिलीफ होता है. उनका कहना था कि धर्म जिस तरह का यकीन मांगता है, वह दरअसल अंधविश्वास है.
3. बिना तर्क के किसी पर यकीन करना स्टुपिडिटी है
जावेद अख्तर ने यह भी कहा कि बिना किसी तर्क या प्रमाण के किसी बात को मानना स्टुपिडिटी है. उन्होंने उदाहरण दिया कि अगर कोई यह मान ले कि एलन मस्क उसका भाई है, सिर्फ इसलिए कि इससे उसे खुशी मिलती है, तो यह मूर्खता होगी. इसी तरह ईश्वर में विश्वास भी, अगर बिना किसी ठोस वजह के है, तो उसे बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकता.
4. जब सारी क्रिएशन पर सवाल उठा सकते हैं तो ईश्वर पर क्यों नहीं?
उन्होंने मौलवी शमाइल नदवी की ‘आइलैंड और बॉल’ वाली मिसाल पर सवाल उठाया. जावेद अख्तर का कहना था कि हम बॉल पर इसलिए हैरान होते हैं क्योंकि वह असामान्य है, लेकिन आइलैंड, सितारे, गैलेक्सी जैसी चीजों को हम नेचर का हिस्सा मानकर ‘टेकन फॉर ग्रांटेड’ ले लेते हैं. हम यह सवाल ही नहीं पूछते कि आइलैंड किसने बनाया, जैसे हम यह नहीं पूछते कि यूनिवर्स क्यों है. उनके अनुसार हर चीज पर ‘किसने बनाया’ का सवाल उठाना जरूरी नहीं.
उन्होंने यह भी कहा कि इंसान की पैदाइश रैंडम है. उनका जन्म किसी तय योजना का हिस्सा नहीं, बल्कि जैविक प्रक्रिया का नतीजा है. इससे वह यह तर्क देते हैं कि हर चीज के पीछे किसी उद्देश्यपूर्ण डिजाइनर को मानना जरूरी नहीं.
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5. इंसाफ नेचर का हिस्सा नहीं, यह इंसानों की बनाई हुई चीज है
जावेद अख्तर ने इंसाफ और नैतिकता के सवाल पर कहा कि इंसाफ नेचर का हिस्सा नहीं है, बल्कि इंसानी सोच की पैदावार है. नेचर में न कोई न्याय है, न अन्याय. शेर हिरण को खा जाता है, तूफान पेड़ उखाड़ देता है, बच्चों की मौत होती है और नेचर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. इसलिए जो इंसाफ और नैतिकता की बात की जाती है, वह इंसानों द्वारा बनाई गई व्यवस्था है, किसी आसमानी ताकत की नहीं.
6. मरने के बाद कौन सा न्याय मिला, किसने देखा?
उन्होंने कहा कि धर्म जिस न्याय और बदले के वादों की बात करता है, वे इसी बात का सबूत हैं कि यह इंसानी कल्पना है. अगर नेचर में कहीं भी इंसाफ नहीं है, तो मरने के बाद मिलने वाले इंसाफ का विचार भी मन की तसल्ली के लिए गढ़ा गया लगता है. यह किसने देखा है कि मरने के बाद किसको कौन सा इंसाफ मिला.
7. सबसे मजहबी इलाकों में ही सबसे ज्यादा अत्याचार क्यों?
धर्म के सामाजिक असर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि अगर धर्म और ईश्वर में विश्वास इंसान को बेहतर बनाता, तो दुनिया के सबसे धार्मिक इलाके सबसे ज़्यादा न्यायपूर्ण और सुरक्षित होते. लेकिन हकीकत इसके उलट है. जहां धर्म ज्यादा हावी है, वहां जुल्म, औरतों पर अत्याचार, तानाशाही और हिंसा भी ज्यादा दिखती है. उनके अनुसार किसी विचार की सच्चाई उसके असर से भी परखी जानी चाहिए, और धर्म इस कसौटी पर खरा नहीं उतरता.
8. मजहब एक शराब है, वह थोड़ी मात्रा में नहीं पिया जाता
उन्होंने यह भी कहा कि धर्म एक ऐसी चीज़ है जो सीमित नहीं रहती, बल्कि बढ़ती जाती है जैसे शराब या कैंसर. थोड़ी मात्रा में शायद नुकसान कम हो, लेकिन समय के साथ यह समाज को नुकसान पहुंचाती है. उनके मुताबिक अगर कोई धार्मिक इंसान अच्छा है, तो वह धर्म की वजह से नहीं, बल्कि उसके बावजूद अच्छा है.
9. धर्म में सवाल उठाने की आजादी क्यों नहीं?
जावेद अख्तर ने सवाल उठाने की आजादी को इंसानी तरक्की की बुनियाद बताया. उन्होंने कहा कि आज जो सुविधाएं हमारे पास हैं, वे उन लोगों की वजह से हैं जिन्होंने सवाल किए, न कि उन लोगों की वजह से जिन्होंने बिना सवाल किए मान लिया. धर्म अक्सर सवालों से डरता है, क्योंकि सवाल उसकी बुनियाद को हिला देते हैं.
10. ईश्वर है तो उसने गाजा में बच्चों की मौत क्यों नहीं रोकी?
अंत में उन्होंने सबसे बड़ा नैतिक सवाल उठाया कि दुनिया में फैली भयानक पीड़ा और मासूम बच्चों की मौत. उन्होंने कहा कि अगर कोई सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी ईश्वर है जो दखल दे सकता है, और फिर भी वह गाजा जैसे हालात में बच्चों को मरते देखता है और कुछ नहीं करता, तो ऐसे ईश्वर की पूजा करने का कोई नैतिक आधार नहीं बचता. उनके अनुसार अगर ऐसा ईश्वर है भी, तो वह सम्मान के योग्य नहीं है, और वह चाहेंगे कि ऐसा ईश्वर न ही हो.
इस तरह जावेद अख्तर की पूरी दलील इस बात पर टिकी है कि इतिहास, तर्क, नैतिकता, इंसानी अनुभव और दुनिया की हकीकत सब ईश्वर के अस्तित्व पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं. ऐसे में ईश्वर पर अंधविश्वास के बजाय ईमानदारी से यह कह देना कि ‘हमें नहीं पता’, ज्यादा इंसानी और तार्किक लगता है.
लल्लनटॉप के यूट्यूब चैनल पर बहस का पूरा वीडियो देखा जा सकता है, जिसे इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक करीब 5 लाख बार देखा जा चुका है. और करीब 60 हजार से अधिक लोगों ने कमेंट कियाहै. इस वीडियो का लिंक ये है-
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