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झारखंड में JEE और NEET की तैयारी करने वाले अनुसूचित जनजाति के बच्चों को राज्य सरकार की ओर से फ्री कोचिंग दी जाएगी. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अनुसूचित जनजाति (एसटी) के छात्रों के लिए एक निःशुल्क कोचिंग संस्थान का उद्घाटन किया है, जिसका नाम दिशोम गुरु शिबू सोरेन इंजीनियरिंग (जेईई) और मेडिकल (एनईईटी) कोचिंग संस्थान है. इसकी स्थापना हिंदपीरी में कल्याण विभाग के भवन में की गई है. जहां 300 चयनित छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विशेष कोचिंग प्रदान की जाएगी.
300 बच्चों का होगा सेलेक्शन
बता दें कि यहां 150 बच्चों को जेईई और 150 बच्चों को नीट की कोचिंग के लिए एंट्रेंस टेस्ट के माध्यम से चुना गया है. इन बच्चों को कोचिंग देने के लिए कल्याण विभाग ने राजस्थान स्थित कोटा में मोशन इंस्टीट्यूट से वेंचर किया है. पहले बैच के लिए 168 लड़कियों सहित कुल 300 छात्रों का चयन किया गया है. दोनों परीक्षाओं के लिए दो तरह के कोर्स शुरू किए गए हैं, जिसमें एक साल और दो साल के कोर्स शामिल हैं. इस बैच में ICSE, सीबीएसई और झारखंड बोर्ड के बच्चों का सिलेक्शन किया गया है.
हाईटेक होंगे क्लासरूम
बताया जा रहा है कि इस खास कोचिंग संस्थान में क्लासरूम डिजिटल होंगे और हर कमरे में खास तरह के लेटेस्ट इक्विपमेंट लगाए गए हैं. फैकल्टी ज्योति कुमारी ने आजतक को बताया कि कैसे बच्चों को तैयार किया जाएगा. हर महीने टेस्ट लिया जाएगा. हर तरह से कॉन्फिडेंस लेवल को भी ऊपर उठाने पर काम किया जाएगा. कोचिंग सेंटर के लिए सेलेक्ट हुई एक लड़की ने बताया कि उसके पिता किसान हैं, ऐसे में कोचिंग के लिए सोचना ही उनके सोच के बाहर की बात थी. इस नई पहल से वो रांची के कोचिंग संस्थान पहुंच गई है. अब आगे भी लक्ष्य पाने में कोई परेशानी नहीं होगी.
बच्चों का कहना है कि अच्छे कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई का खर्च लाखों में है. उनके माता पिता और पारिवारिक स्थिति ऐसी है कि उनके लिए इंजीनियर और डॉक्टर बनने के अरमान तो दूर उनके लिए तैयारी करना ही आसान नहीं होता.
कोचिंग संस्थान में फ्री कोचिंग के साथ रहने खाने की व्यवस्था तीन हॉस्टल में होगी. इसके साथ ही स्टडी मैटेरियल भी फ्री मिलेगा. आदिवासी और अनुसूचित कल्याण मंत्री चमड़ा लिंडा ने बताया, ‘कोचिंग के लिए चुने गए ज्यादातर प्रतिभागी ग्रामीण इलाकों के हैं. उनके लिए रांची या बड़े शहर में रहना ही मुश्किल है. कोचिंग का खर्च वो कहां से अफोर्ड करते. ये अपने तरह का अनुसूचित जातियों के बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए पहला और अनूठा प्रयास है.’
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