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बारिश का मौसम है. सावन भी है और नक्षत्रों के अनुसार दिन भी सही चल रहे हैं, लेकिन वर्षा है कि होने का नाम नहीं ले रही है. हो रही है तो कहीं घनघोर वर्षा और कहीं-कहीं तो सावन ही जेठ सा गुजर रहा है. कहते हैं कि बादशाह अकबर ने एक बार अपने दरबार में पूछा, 12 में से 2 गया तो क्या बचा? पूरे दरबार ने बताया 10. यूं तो जवाब सही था, लेकिन अगर जवाब देना इतना ही आसान होता तो हिंदुस्तान का बादशाह, अपने दीवान-ए-खास में ये आसान सवाल क्यों ही उछालता?
अकबर-बीरबल की कहानी और बारिश
खैर, थोड़ी देर बाद बादशाह अकबर के चहीते और बल-बुद्धी में प्रवीण, उनके अजीज खास मंत्री बीरबल पधारे. दरबार में बिखरी खामोशी देखकर, उन्होंने ही पूछा कि क्या हुआ? अकबर ने अपना वही सवाल दोहरा दिया. बताओ बीरबल, 12 में से दो गया तो क्या बचा? हाजिर जवाब बीरबल तुरंत कहा- गजब हो हुजूर! गजब… सब लुट गया, बरबाद हो गया. 12 में से दो गया तो कुछ नहीं बचा.
अब सारा दरबार और खुद बादशाह भी बीरबल का मुंह ताकें. दरबारी कहें- बड़ा खुद को तीसमारखां समझते थे, गणित का सीधा सा सवाल हल नहीं कर सकते. कुछ ने कहा- बीरबल में अब वो बात नहीं रही, लगता है बुद्धि फिर गई है. दरबार में होने वाली कानाफूसी को देखते हुए, बादशाह ने सबको खामोश किया और फिर बीरबल से पूछा- ये तुम क्या कह रहे हो बीरबल? 12 में से दो गया तो कुछ नहीं बचा, सब खत्म कैसे हो गया?
बीरबल ने कहा- बादशाह का परचम बुलंद रहे… लेकिन आप ही बताइए, 12 महीनों में से दो महीने सावन-भादों निकाल दें तो क्या ही बचेगा? फसल बरबाद हो जाएगी, खेती खराब हो जाएगी, किसान मारा जाएगा और लगान भी नहीं मिलेगा, राज्य का खजाना खाली रह जाएगा. इसलिए मैंने कहा- 12 में से दो गया तो कुछ नहीं बचा. बीरबल का जवाब सुन अकबर और दरबारी वाह-वाह कर उठे. कहने को तो ये महज एक किस्सा भर है और किस्सागोई के सिलसिलों में खूब जाना-पहचाना है, लेकिन इस किस्से को ध्यान से सुनें और समझें तो गाहे-बगाहे ये किस्सा वर्षा ऋतु के मौसम और अच्छी वर्षा की जरूरत की बात करता है.
सावन और भादों का महत्व
सावन और भादों (भाद्रपद) चातुर्मास में वर्षा ऋतु के खास दो महीने हैं और इन दोनों महीनों में रिमझिम-ऱिमझिम के साथ मूसलाधार बारिश का होते रहना अनिवार्य है. ऐसा न होने पर फसल चक्र तो प्रभावित होता ही है, जीवन चक्र पर भी असर पड़ता है. भारतीय जन-जीवन और ग्रामीण परिवेश तो कृषि पर ही आधारित रहा है, इसलिए वर्षा का अनुमान और वर्षा कब और कितनी होगी, इसका आकलन भी जन-जीवन का जरूरी अंग है.
महाकवि घाघ और उनकी कहावतें
पुराने लोग तो ग्रह-नक्षत्र और मुहूर्त देखकर बारिश होने और न होने की भविष्यवाणी करते थे. इन्हीं पुरातनियों में से एक रहे हैं, लोक के कवि, महाकवि घाघ. अपनी ठेठ भाषा शैली में घाघ कवि की कविताएं खेती-किसानी और बारिश की खूब बात करती हैं. घाघ कवि अपनी कविताओं के जरिए सिर्फ ये अनुमान नहीं लगाते हैं कि बारिश कब होगी और कितनी होगी, बल्कि वो ताल ठोंक के दिन-तारीख और घंटे तक भी बता देते हैं कि अगर कुछ खास संयोग बने तो कितनी बारिश होगी.
महाकवि घाघ की कविताओं और उनकी कहावतों की कुछ बानगी देखिए.
सावन मास बहे पुरवइया,
बछवा बेच लेहु धेनु गइया॥
यानी अगर, सावन महीने में पुरवैया हवा (पूर्व दिशा से हवा) बह रही हो तो अकाल पड़ने की संभावना है. किसानों को चाहिए कि वे अपने बैल बेच कर गाय खरीद लें, कुछ दही-मट्ठा तो मिलेगा.ऐसा होता भी है, पूर्व दिशा की हवा मानसूनी बादलों को भेदती है और वह संघनित होने की बजाय बिखर जाते हैं, इसलिए वर्षा नहीं हो पाती है.
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय,
तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए॥
यानी अगर शुक्रवार को घिरे बादल शनिवार को भी छाए रह जाएं, तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा. वर्षा जरूर होगी ही.
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय,
कहै घाघ सुन घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय॥
अगर रोहिणी (एक नक्षत्र) पूरा बरस जाए, मृगशिरा (यह भी एक नक्षत्र है) में तपन रहे और आर्द्रा (यह वर्षा का ही नक्षत्र है) में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे.
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि,
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि॥
यानी उत्तरा (नक्षत्र) और हथिया नक्षत्र (हस्ति नक्षत्र) में यदि पानी न भी बरसे और चित्रा (नक्षत्र) में पानी बरस जाए तो भी उपज ठीक-ठाक हो जाती है. यानी बहुत संकट नहीं रहता है, किसान संतोष कर लेता है.
पुरुवा रोपे पूर किसान,
आधा खखड़ी आधा धान॥
यानी पूर्वा नक्षत्र में धान रोपने पर आधा धान और आधा खखड़ी (कटकर-पइया) पैदा होता है.
आद्रा में जौ बोवै साठी,
दु:खै मारि निकारै लाठी॥
यानी जो किसान आर्द्रा नक्षत्र में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है. ग्रामीण परंपरा में फसल बोने के लिए किसान इसी वजह से मुहूर्त दिखाते हैं और आमतौर पर आर्द्रा नक्षत्र के लगने के साथ ही बुआई शुरू कर दी जाती है.
माघ क ऊखम जेठ का जाड़,
पहिलै बरखा भरिगा ताल॥
कहैं घाघ हम होब बियोगी.
कुंआ के पानी धोइहैं धोबी॥
अगर माघ में गर्मी पड़े और जेठ में जाड़ा लगे और पहली ही वर्षा से तालाब भर जाए, तो घाघ कहते हैं कि ऐसा सूखा पड़ेगा कि हमें परदेश जाना पड़ेगा और धोबी लोग कुएं के पानी से कपड़ा धोएंगे.
उलटे गिरगिट ऊंचे चढै.
बरखा होइ भूइं जल बुडै..
यानी यदि गिरगिट पेड़ पर उल्टा होकर अर्थात पूंछ ऊपर की ओर करके चढे़ तो समझना चाहिए कि इतनी वर्षा होगी कि पृथ्वी पानी में डूब जाएगी.
सूखे की तरफ संकेत करने वाली घाघ की एक कहावत है –
दिन को बादर रात को तारे.
चलो कंत जहं जीवैं बारे..
इसका मतलब है कि अगर दिन में बादल हों और रात में तारे दिखाई पड़े तो सूखा पडे़गा. हे नाथ वहां चलो जहां बच्चे जीवित रह सकें.
वर्षा की विदाई का संकेत देने वाली उनकी एक कहावत है –
रात करे घापघूप दिन करे छाया,
कहैं घाघ अब वर्षा गया।।
अगर रात में खूब घटा घिर आए, दिन में बादल तितर-बितर हो जाएं और उनकी छाया पृथ्वी पर दौड़ने लगे तो घाघ कहते हैं कि वर्षा को गई हुई समझना चाहिए.
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर,
परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा भी तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे.
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय,
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
अगर भादो की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है.
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि,
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे.
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय,
घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
अगर पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा.
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय,
महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
अगर श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा बहुत थोड़ी होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे.
पूस मास दसमी अंधियारी,
बदली घोर होय अधिकारी।
सावन बदि दसमी के दिवसे,
भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
अगर पूस कृष्ण दशमी को घनघोर घटा छाई हो तो सावन कृष्ण दशमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी.
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज,
मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
यदि पूस शुक्ल पक्ष सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् सुकाल होगा.
रोहिनी जो बरसै नहीं, बरसे जेठा मूर,
एक बूंद स्वाती पड़ै, लागै तीनिउ नूर।।
यदि रोहिणी नक्षत्र में वर्षा न हो पर ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र बरस जाए तथा स्वाती नक्षत्र में भी कुछ बूंदे पड़ जाएं तो तीनों अन्न (जौ, गेहूं और चना) अच्छा होगा.
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात,
बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो सूखा पड़ेगा. न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा.
असुनी नलिया अन्त विनासै,
गली रेवती जल को नासै।।
भरनी नासै तृनौ सहूतो,
कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
यदि चैत्र मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अंत में सूखा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी, भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी.
अषाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत,
नासे लच्छन काल का, आनंद मानो संत।।
आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा.
हस्त बरस चित्रा मंडराय,
घर बैठे किसान सुख पाए।।
हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं.
जब बरखा चित्रा में होय.
सगरी खेती जावै खोय..
चित्रा नक्षत्र की वर्षा सारी खेती नष्ट कर देती है.
जो बरसे पुनर्वसु स्वाती,
चरखा चलै न बोलै तांती।।
पुनर्वसु और स्वाती नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है कि उन्हें और तांत चलाकर जीवन निर्वाह करने की जरूरत नहीं पड़ती.
जो कहुं मग्घा बरसै जल,
सब नाजों में होगा फल।।
मघा में पानी बरसने से सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं.
अषाढ़ मास आठें अंधियारी,
जो निकले बादर जल धारी।।
चन्दा निकले बादर फोड़,
साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
यदि अषाढ़ कृष्ण अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी.
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