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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका को ख़ारिज कर दिया है. यह याचिका कथित ‘कैश बरामदगी विवाद’ से जुड़ी हुई थी. कोर्ट ने जस्टिस वर्मा को “गहराई से व्यथित जज” कहा, जो एक अप्रिय स्थिति में फंसे हैं.
जस्टिस दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली पीठ ने कहा, “समय पर एक टांका लगाओ तो नौ टांके बच जाते हैं” (A stitch in time saves nine).
इस कहावत का मतलब है कि किसी समस्या को तुरंत हल करना बेहतर है, ताकि वह बाद में बड़ी समस्या न बन जाए. जस्टिस दत्ता ने “इन-हाउस जांच” को एक ज़रूरी कदम बताया.
इन-हाउस जांच एक साधन है- कोर्ट
पीठ ने स्पष्ट किया कि इन-हाउस जांच न तो किसी न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया है और न ही यह कोई संविधान विरोधी प्रक्रिया है. यह केवल प्रारंभिक जांच है, जो संसदीय प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करती और न्यायाधीश के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती.
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कोर्ट ने कहा कि भले ही रिपोर्ट में आरोपों में पर्याप्त तथ्य दर्ज हों, लेकिन जांच अधिनियम, दुर्व्यवहार के आरोपी न्यायाधीश को आरोप का समर्थन करने वाले गवाहों के साक्ष्य दर्ज होने के बाद, स्वीकार्य और प्रासंगिक साक्ष्य प्रस्तुत करके प्रभावी बचाव करने से नहीं रोकते हैं.
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन-हाउस जांच की रिपोर्ट के आधार पर किसी जज को सीधे नहीं हटाया जा सकता. जज को हटाने की प्रक्रिया संसद द्वारा ही की जाती है, जैसा कि संविधान में बताया गया है. यह प्रक्रिया जज के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती.
कमेटी की फाइंडिंग अंतिम नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ किया कि इन-हाउस कमेटी की जांच एक शुरुआती जांच है, अंतिम नहीं. कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सीधे कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपों में दम पाया जाता है, तो भी ‘इन्क्वायरी एक्ट’ के तहत एक पूरी जांच होगी.
कोर्ट ने जस्टिस वर्मा को यह भी अधिकार दिया कि अगर नई कमेटी इन-हाउस रिपोर्ट पर भरोसा करती है, तो वह इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकते हैं. पीठ ने यह भी कहा कि जस्टिस वर्मा की ओर से जांच प्रक्रिया में शामिल होकर बिना आपत्ति के भाग लेना और फिर रिपोर्ट आने के बाद उसकी वैधता पर सवाल उठाना चौंकाने वाला व्यवहार है.
CJI की अहम भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की महत्वपूर्ण नैतिक जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि न्यायपालिका पारदर्शी और संवैधानिक तरीके से काम करे.
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कोर्ट ने कहा कि CJI केवल एक ‘पोस्ट ऑफिस’ नहीं हैं, जो बिना किसी टिप्पणी के रिपोर्ट को राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को भेज दें. CJI की भूमिका यह सुनिश्चित करने में बहुत अहम है कि कोई जज कदाचार में लिप्त न हो.
जस्टिस वर्मा का आचरण भी हैरान करने वाला
कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के आचरण पर भी सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि यह बात हैरान करती है कि उन्होंने जांच में भाग लिया और आरोपों की जांच वाली रिपोर्ट आने के बाद ही इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए.
कोर्ट ने कहा कि हालांकि जांच के दायरे में आए न्यायाधीश के विरुद्ध उपलब्ध साक्ष्यों को पब्लिक डोमेन में अपलोड करना प्रक्रिया के अंतर्गत अपेक्षित कदम नहीं है. इस तरह की अपलोडिंग को उचित नहीं माना जा सकता है लेकिन फिर भी यह एक वास्तविक तथ्य है.
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