क्या आपको पता है पीवी नरसिंहराव सरकार के बाद दुनिया के किस देश ने भारतीयों का सर्वाधिक स्वागत किया? उन्हे रोजगार-नागरिकता दी? जवाब है अमेरिका और कनाड़ा। कनाड़ा में 1996 में कोई सवा छह लाख भारतीय थे अब कोई उन्नीस लाख है। ऐसे ही अमेरिका में 2002 से 2023 के बीच तेरह लाख भारतीयों को नागरिकता मिली है। अमेरिका में अब मेक्सिको के बाद सर्वाधिक प्रवासी भारतीय है! डेमोक्रेटिक पार्टी के बिल क्लिंटन हो या रिपब्लिकन बुश या डेमोक्रेटिक ओबामा सभी ने भारतीयों को मौका दिया। यही स्थिति कनाड़ा में ट्रूडो सरकार तक रही।
लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की करनी-धरनी से आज क्या स्थिति है? दोनों देशों से भारत दुनिया में बदनाम है। डेड इकॉनोमी, तड़ी पार पुतिन का साथी और सार्वभौम देश में हत्याएं करवाने वाले भारत का वैश्विक नैरेटिव बनाए हुए है। भारत के लंगूर भक्त भले ट्रंप को अब एक्सपोज कर अपने को सूरमा मान रहे है लेकिन दुनिया तो अमेरिका, कनाड़ा को सुनती है। कनाड़ा ने तो भारत के लोगों को वीसा देने में भी कोताही बरती हुई है! रिश्ते ठप्प है और वहा हिंदू कलपते हुए है।
पिछले दो सप्ताह से डोनाल्ड़ ट्रंप और उनके डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ ने जिस तरह भारत को बदनाम किया है उससे लगता है कि ट्रंप या तो नरेंद्र मोदी को झूका कर मानेंगे या भारत को चीन, रूस की और धकेल कर विश्व राजनीति में उसकी तड़ी पार वाली दशा बना देंगे। भारत न इधर का रहेगा और न उधर का।
सवाल है भारत-अमेरिका रिश्तों की ऐसी दशा के हालातों का स्पार्किंग बिंदु कौन सा है? बाईस मिनट का “आपरेशन सिंदूर”। यह इतिहास को अब प्रधानमंत्री मोदी, विदेश मंत्री जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की वह देन है जो भारत की भावी पीढ़ियों के लिए लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पाई के नाते याद रहेगी।
इस आपरेशन की तैयारी करते हुए आगा-पीछा कुछ भी नहीं सोचा गया। इतना भी नहीं कि फंला-फंला सिनेरियों में ट्रंप को कैसे हैंडल करेंगे? पाकिस्तान क्या तैयारी किए बैठा होगा? उसे कही चीन की सेना, तकनीक, हथियारों की बैकअप तो नहीं है? यदि उसने परमाणु मिसाईल भारत की और मोड़ अमेरिका को आगाह किया तब यदि ट्रंप प्रशासन ने दखल दी तो प्रधानमंत्री दफ्तर उसके फोन को उठाएगा या अपनी परमाणु मिसाईले पाकिस्तान की और एक्टीव करेगा ताकि दुनिया को मालूम हो कि हम डरते नहीं। जाहिर है भारत ने डोनाल्ड ट्रंप, जनरल मुनीर, शी जिनपिंग के दिमाग को समझे बिना ही आपरेशन सिंदूर रचा। यह बेसिक समझ भी नहीं रखी कि ट्रंप अंहकारी, पागल है, जनरल मुनीर उन्मादी-धूर्त है और उसके पीछे शैतान चीन है। इतना आगा-पीछा तो सोचना था, ट्रंप को कह देना था कि अमेरिका बिल्कुल दखल न करें। हम अंत तक लड़ेंगे। हमें पाकिस्तान को ठोकना या हैंडल करना आता है।
सो अब ट्रंप भारत की वह बदनामी करते हुए है जिससे भारत की भू-राजनीति, विश्व राजनीति, सामरिक-क्षेत्रिय सुरक्षा तथा उसके निर्यात सब खतरे में है। 1995 में उदारीकरण के बाद, भूमंडलीकरण से भारत का जो मान बना था, जो रणनीतिक-आर्थिक रचना बनी थी वह मिट्टी में मिल गई है। पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर इसी महिने फिर अमेरिका जा रहे है। ट्रंप के साथ फिर उनकी मुलाकात संभव है। अमेरिका-पाकिस्तान का नया गठजोड शक्ल लेता हुआ है। व्हाइट हाउस के उप प्रमुख स्टाफ और ट्रंप के सबसे करीबि सहयोगियों में से एक, स्टीफन मिलर का यह ताजा कहा गंभीर है कि “लोग यह जानकर चौंक जाएंगे कि रूस से तेल खरीदने के मामले में भारत लगभग चीन के बराबर है। यह एक चौंकाने वाला तथ्य है।”
इस तरह बोलना योरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया जैसे पश्चिमी देशों की उस जमात में भारत को खलनायक बनाना है जो यूक्रेन पर रूस की आक्रामकता से सुलगे हुए है। यदि रूस से धंधे के हल्ले में ट्रंप ने सचमुच भारत पर 25 प्रतिशत टॅरिफ बढ़ा दिया तो दुनिया में इसका मनोवैज्ञानिक असर होगा। तब क्वाड़ एलायंस हो या अमेरिका की जगह ब्रिटेन, योरोपीय संघ को निर्यात बढ़ाना सब भारत के लिए मुश्किल होगा। यह भूल जाए कि पुतिन लड़ाई बंद कर या योरोप से माफी मांग तथा ट्रंप की पैरवी से वापिस जी-7 समूह के माननीय सदस्य बन जाएगें। इसलिए क्योंकि पुतिन और रूस सौ टका चीन जैसा चाहेगा वैसा करेंगे। तभी ट्रंप और अमेरिका को येन-केन संभालना भारत की फिलहाल परम आवश्यकता है। पर हालात वही है जो कनाड़ा के संकट के समय थे। मोदी सरकार में वह सक्षमता है ही नहीं जो ट्रूडो या ट्रंप का सामना कर सच्चाई से भूल-चूक लेनी-देनी से कूटनीति साधे!
मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति –
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तो शी जिन को झूला झुलाएंगे, तड़ी पार पुतिन के लिए लाल कालीन बिछाएंगे।