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Sahitya AajTak 2024: ‘साहित्य आजतक 2024’ के मंच पर सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ जारी है. अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज कलाकार, लेखक, इतिहासकार, शायरात और कवि-कवयित्री इस महफिल को रोशन कर रहे हैं.
तीसरे दिन ‘कवि सम्मलेन’ सत्र में कवि विष्णु सक्सैना, कवि डॉ. शिव ओम अम्बर, कवयित्री डॉ. कीर्ति काले और कवयित्री शशि श्रेया ने अपनी रचनाओं से महफिल लूटी. सत्र के दौरान दर्शक मंत्रमुग्ध रह गए. लड़कों-लड़कियों, बेटियों, बुजुर्गों, मां-बाप और ईश्वर पर लिखी कविताओं ने दर्शकों को ताली बजाने पर मजबूर कर दिया. उनमें से कुछ पंक्तियां यहां लिखी हैं-
कवयित्री शशि श्रेया की कविताएं
चपल नयन मुख मंडल मयंक सम
अंखियों में घुलते हैं ख्वाब जैसे लड़के
जिम्मेदारियों के कंटकों में हैं घिरे परंतु
खुशबू बिखरते गुलाब जैसे लड़के
दोनों हाथ जेब में जो डालके हैं डोलते तो
लगते हैं हिंद के नवाब जैसे लड़के
नयनों को देखो तो शराब जैसे लड़के हैं
दिल को जो देखो तो किताब जैसे लड़के
चांद की चंदनियां से धुली-धुली लड़कियां
सूर्य की तपिश से निखारे हुए लड़के
फागुनी फुहार से सजाए हुए रूप सभी
सांज के स्नेह संवारे हुए लड़के
भाग्य से सताए गए प्रेम में रुलाए गए
इसीलिए थोडे-थोड़े खारे हुए लड़के
ठान लें तो दुनिया के सारे युद्ध जीत लेंगे
कारे-कारे नयनों पर हारे हुए लड़के
तूफानी लहरों से यारी कहते हैं
दर्द पर अपनी दावेदारी कहते हैं
खाना-पीना-सोना छोड़ दिया हमने
इश्क को इसीलिए बिमारी कहते हैं
नयन बादल बनाए जा रहे हैं
हृदय घायल बनाए जा रहे हैं
मुहब्बत कर लिए तो होश आया
हम पागल बनाए जा रहे हैं
झूठ कहने से मुकरना चाहिए था
कम से कम ईश्वर से डरना चाहिए था
प्रेम कहकर वासनाएं जी रहे हो
आपको तो डूब मरना चाहिए था
डॉ. शिव ओम अम्बर की कविताएं
बड़ी मुश्किल से अपने बालों पर सफेदी हमने पाई है
इसे पाने को आधी उम्र की कीमत चुकाई है
बिवाई पांव की हाथों के ये छाले बताएंगे
हमारी जेब में गाढ़े पसीने की कमाई है
मुहब्बत दोस्तों से की, मुहब्बत दुश्मनों से की
ये दौलत हमने दोनों हाथे से लुटाई है
अदब से बांचना उसको
हर कवि की हथेली पे
विधाता ने बहुत गहरी रेखा बनाई है
या बच्चलन हवाओं का रुख मौड़ देंगे हम
या खुद को वाणी पुत्र कहना छोड़ देंगे हम
जिस दिन हिचकिचाएंगे लिखने में हकीकत
कागज को फाड़ देंगे कलम तोड़ देंगे हम
जो कांटों में मुस्काए जवानी उसको कहते हैं
जो राहें नई बनाए जवानी उसको कहते हैं
चलते-चलते लड़खड़ा जाए ये भी मुम्किन है पर
जो गिरकर उठ जाए जवानी उसको कहते हैं
कवयित्री डॉ. कीर्ति काले की कविताएं
आयोध्या में अगर ढूंढोगे तो श्रीराम मिलते हैं
वृंदावन में ढूंढोगे तो घनश्यान मिलते हैं
अगर काशी में ढूंढ़ोगे तो भोलेनाथ मिल जाएं
मगर मां-बात के चरणों में चारों धाम मिलते हैं.
नए की चाह में रिश्ते पुराने तोड़ मत देना
तरक्की खूब करना पर किसी को होड़ मत देना
बुढ़ापे में पड़े उनको जरूरत जब सहारे की
कभी मां-बाप को तुम बेसहारा छोड़ मत देना
भले चूड़ी भले पायल भले न हार देना तुम
जन्मदिन पर भले मत कीमती उपहार देना तुम
भले बंगला भले पैसा भले न कार दे पाओ
मगर बच्चों को जीवन में भले संस्कार देना तुम
जिंदगी का जवाब देती हूं
इस तरह से हिसाब देती हूं
जो बिछाते हैं राह में कांटे
उन्हें भी गुलाब देती हूं
याद कोई करता है
हिचकियां बताती हैं
कौन पास कितना है
दूरियां बताती हैं
धीरे-धीरे खुलते हैं ये दिलों के दरवाजे
दिल की बात आंखों की खिड़कियां बताती हैं
रात भर जगी है रात
रातभर हुई बरसात
शब के राज को चटकीं चूड़ियां बताती हैं
आज भी तड़पता है दिल किसी की यादों में
ये किताब में रखीं चिट्ठियां बताती हैं
भाई की भुजाओं के शौर्य पर भरोसा है
सरहदों पर बहनों की राखियां बताती हैं
विष्णु सक्सैना की कविताएं
दिले बीमार सही हो वो दवाएं दे दे
सभी पे प्यार लुटाऊं ये दुआएं दे दे
ऐ मेरे रब मैं सांस-सांस में महक जाऊं
मेरी आवाज़ की ख़ुश्बू को हवाएं दे दे.
प्यास बुझ जाए तो शबनम खरीद सकता हूं,
ज़ख़्म मिल जाए तो मरहम खरीद सकता हूं.
ये मानता हूं, मैं दौलत नहीं कमा पाया,
मगर तुम्हारा हर एक गम खरीद सकता हूं.
सोचता था कि मैं तुम गिर के संभल जाओगे
रौशनी बन के अंधेरों का निगल जाओगे
न तो मौसम थे न हालात न तारीख़ न दिन
किसे पता थी कि तुम ऐसे बदल जाओगे.
तू जो ख़्वाबों में भी आ जाए तो मेला कर दे
ग़म के मरुथल में भी बरसात का रेला कर दे
याद वो है ही नहीं आए जो तन्हाई में
तेरी याद आए तो मेले में अकेला कर दे
आपके नाम ने ही बंद हिचकियां कर दीं
धूप के होंठ पे पानी की बदलियां कर दीं
हर तरफ फूल हैं, खुशबू है, खुशनुमा मौसम
आपने जून के मौसम में सर्दियां कर दीं.
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